नैनो विज्ञान अति सूक्ष्म मशीनें बनाने का विज्ञान है। ऐसी मशीनें, जो इंसान के जिस्म में उतर कर, उसकी धमनियों में चल-फिर कर वहीं रोग का ऑपरेशन कर सकें। ऐसी मशीनें, जो मोबाइल को आपके नाखून से भी छोटा कर दें। जो ऐसी धातु बना दें, जो स्टील से दस गुना हल्की और सौ गुना मजबूत हो। यानी वह धातु, जिससे ऐसे खंभे बनाए जा सकें, जो सिर्फ कुछ इंच के हों, लेकिन पुल का बोझ सह सकें।
नैनो का अर्थ है ऐसे पदार्थ, जो अति सूक्ष्म आकार वाले तत्वों (मीटर के अरबवें हिस्से) से बने होते हैं। नैनो तकनीक (Nano Technology) वह तकनीक है जिसके द्वारा किसी भी पदार्थ में परमाणु, आणविक और सुपरमॉलीक्यूलर स्तर पर परिवर्तन किया जा सकता है। नैनो टेक्नोलॉजी अणुओं व परमाणुओं की एक इंजीनियरिंग है, जो भौतिकी, बायो इन्फॉर्मेटिक्स व बायो टेक्नोलॉजी जैसे अन्य कई विषयों को आपस में जोड़ती है। इसमें 1 से 100 नैनोमीटर तक के कण शामिल होते है।
बता दें कि नैनो टेक्नोलॉजी जैसी तकनीक सबसे पहले उस समय अस्तित्व में आई, जब 29 दिसम्बर,1959 में अमेरिकी वैज्ञानिक रिचर्ड फेनमेन ने अपनी थ्यौरी “There’s Plenty of the Room at the Bottom” में उसका व्याख्यान दिया। इसमें उन्होंने पहली बार पदार्थ के गुण और उनसे बनने वाली वस्तुओं के संभावित विषय पर चर्चा की। लेकिन 1974 में नैनो टेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जापान के प्रोफेसर नोरियो तानीगूची ने प्रयोग किया। इसके बाद नैनो टेक्नोलॉजी को विज्ञान के रूप में स्थापित करने का कार्य अमेरिकी वैज्ञानिक ऐरिक डेक्सलर को जाता है। उन्होंने ए.एफ.एम. का निर्माण किया जिससे परमाणु का चित्र लिया जा सकता है और इसन खोज के लिये उन्हें 1987 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
21वीं सदी नैनो सदी बनने जा रही है। आज वस्तुओं के आकार को छोटा और मजबूत बनाने की होड़-सी मची हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में नैनो तकनीक विकसित करने के लिए दुनिया भर में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे हैं। वर्तमान में अति सूक्ष्म आकार, बेजोड़ मजबूती और टिकाऊपन के कारण नैनो तकनीक का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, मेडिसिन, ऑटोमोबाइल्स, बायोसाइंस, कृषि एवं खाद्य, पेट्रोलियम, पर्यावरण और स्वास्थ्य, कॉस्मेटिक्स, फॉरेंसिक और डिफेंस जैसे तमाम क्षेत्रों में किया जा रहा है।
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नैनो विज्ञान अति सूक्ष्म मशीनें बनाने का विज्ञान है। ऐसी मशीनें, जो इंसान के जिस्म में उतर कर, उसकी धमनियों में चल-फिर कर वहीं रोग का ऑपरेशन कर सकें। ऐसी मशीनें, जो मोबाइल को आपके नाखून से भी छोटा कर दें। जो ऐसी धातु बना दें, जो स्टील से दस गुना हल्की और सौ गुना मजबूत हो। यानी वह धातु, जिससे ऐसे खंभे बनाए जा सकें, जो सिर्फ कुछ इंच के हों, लेकिन पुल का बोझ सह सकें।
नैनो का अर्थ है ऐसे पदार्थ, जो अति सूक्ष्म आकार वाले तत्वों (मीटर के अरबवें हिस्से) से बने होते हैं। नैनो तकनीक (Nano Technology) वह तकनीक है जिसके द्वारा किसी भी पदार्थ में परमाणु, आणविक और सुपरमॉलीक्यूलर स्तर पर परिवर्तन किया जा सकता है। नैनो टेक्नोलॉजी अणुओं व परमाणुओं की एक इंजीनियरिंग है, जो भौतिकी, बायो इन्फॉर्मेटिक्स व बायो टेक्नोलॉजी जैसे अन्य कई विषयों को आपस में जोड़ती है। इसमें 1 से 100 नैनोमीटर तक के कण शामिल होते है।
बता दें कि नैनो टेक्नोलॉजी जैसी तकनीक सबसे पहले उस समय अस्तित्व में आई, जब 29 दिसम्बर,1959 में अमेरिकी वैज्ञानिक रिचर्ड फेनमेन ने अपनी थ्यौरी “There’s Plenty of the Room at the Bottom” में उसका व्याख्यान दिया। इसमें उन्होंने पहली बार पदार्थ के गुण और उनसे बनने वाली वस्तुओं के संभावित विषय पर चर्चा की। लेकिन 1974 में नैनो टेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जापान के प्रोफेसर नोरियो तानीगूची ने प्रयोग किया। इसके बाद नैनो टेक्नोलॉजी को विज्ञान के रूप में स्थापित करने का कार्य अमेरिकी वैज्ञानिक ऐरिक डेक्सलर को जाता है। उन्होंने ए.एफ.एम. का निर्माण किया जिससे परमाणु का चित्र लिया जा सकता है और इसन खोज के लिये उन्हें 1987 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
21वीं सदी नैनो सदी बनने जा रही है। आज वस्तुओं के आकार को छोटा और मजबूत बनाने की होड़-सी मची हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में नैनो तकनीक विकसित करने के लिए दुनिया भर में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे हैं। वर्तमान में अति सूक्ष्म आकार, बेजोड़ मजबूती और टिकाऊपन के कारण नैनो तकनीक का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, मेडिसिन, ऑटोमोबाइल्स, बायोसाइंस, कृषि एवं खाद्य, पेट्रोलियम, पर्यावरण और स्वास्थ्य, कॉस्मेटिक्स, फॉरेंसिक और डिफेंस जैसे तमाम क्षेत्रों में किया जा रहा है।
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